Publisher's Synopsis
भगवान श्रीकृष्ण अपने जीवन काल में अनगणित अधर्मियों का नाश कर न्याय नीति की स्थापना की थी। वह बड़े परोपकारी और निर्लोभी थे। राजबंशी होेने पर भी साधारण बच्चों की तरह उनकी शिक्षा दीक्षा हुई थी। वह यदुवंशी यदु राजा ययाति के पुत्र थे। श्रीकृष्ण एक विस्तृत राज्य के अधीश्वर थे। उनकी राजधानी द्वारिका में थी। कौस्तुभ मणि उनका आभूषण था। नंदक नामक खड़ग, कौमोदिक नामक गदा और सुदर्शन नामक चक्र उनके आयुध थे। उनके शंख का नाम पांचजन्य था। युद्धकला में वह बड़े ही निपुण थे। उनकी जोड़ का एक भी मनुष्य उस युग में नहीं पाया जाता। श्रीकृष्ण का हृदय प्रेम से परिपूर्ण रहता था। वह जिस प्रकार शासन और ऐश्वर्य भोग करना जानते थे, उसी प्रकार योग का रहस्य भी समझते थे। गीताशास्त्र देखने से उनकी विद्वता का पता चलता है। उन्होंने अर्जुन को प्रवृत्ति में ही निवृत्ति का मार्ग दिखा दिया था। हमें श्रीकृष्ण को आदर्श मान उनकी जीवनचर्या से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।